बेटी : बहुमूल्य रत्न
प्रेरक प्रसंग
बेटी : माँ का बहुमूल्य रत्न
दिन के पश्चात अस्पताल से घर लौटी शैलजा, पर घर लौट कर भी तो वह बिस्तर पर ही है। अचानक पैर फिसल जाने के कारण पांव की हड्डी टूट गई थी। जब से वह बिस्तर पर है तब से उसकी 18 वर्षीय बेटी लेखा ने अपने कंधों पर सारी जिम्मेदारी ले रखी है। घर में खाना बनाना, फिर मां के लिए टिफिन भर के अस्पताल ले जाना, उन्हें खिलाना, बेड पैन देना, उनके शरीर को स्पंज करना, कपड़े बदलना सारी जिम्मेदारी लेखा ने बखूबी संभाल ली। एक नन्ही सी जान और काम हजार फिर भी चेहरे पर शिकन नहीं। इतने सब कामों के बीच भी अपनी पढ़ाई जारी रखना कोई मामूली बात नहीं है, परंतु लेखा ने उसे भी बखूबी संभाल लिया है क्योंकि इस साल उसे इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम देना है।
शैलजा को चाहे कितनी ही तकलीफ हो वह अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेर कर अपनी बेटी से कहती *अब थोड़ा सा आराम कर लो बेटा! इतना काम करने के पश्चात फिर पढ़ाई के लिए बैठ गई हो। शरीर को भी थोड़ा सा आराम देना जरूरी है।*
मां की तकलीफ को देखकर लेखा की आंखों में कई बार आंसू आ जाते, परंतु मां के सामने वह अपने चेहरे पर दुख का भाव आने नहीं देती। वह जानती है कि *अगर मेरे चेहरे पर उदासी की काली छाया जरा भी दिखी तो माँ भी दुखी हो जाएगी।*
चार महीने के बाद बिस्तर से उठकर शैलजा ऑफिस जाने लगी। ऑफिस में बैठकर उसके पांव में इतनी सूजन आ जाती कि शाम तक उसका हाल बुरा हो जाता। घर आते ही बेटी प्यार से कहती *मां आप थोड़ी देर लेट जाओ। आपको मैं चाय बना कर देती हूं, फिर उठकर चाय पी लेना। पांव की सूजन भी कम हो जाएगी।*
शैलजा की आंखें भावुकता में भीग जातीं, बेटी का प्यार और सेवा पाकर। वह मन ही मन सोचती *ईश्वर ने अगर मुझे बेटी नहीं दी होती तो आज इतनी सेवा कौन करता। कौन मेरी तकलीफ को समझता और मेरी छोटी से छोटी बात का ध्यान कौन रखता?*
परीक्षा का परिणाम आया तो लेखा के चेहरे पर खुशी ना देख कर शैलजा ने पूछा *क्या बात है बेटा? इतनी उदास क्यों हो? आओ मेरे पास आकर बैठो और जो भी बात हो मुझसे कहो।*
मां की प्यार भरी बातें सुनकर और प्यार का स्पर्श पाकर लेखा की आंखें उमड़ पड़ी *मां मुझे क्षमा करना! मैं आपको खुशी नहीं दे पाई। मन मुताबिक मेरा रिजल्ट नहीं आया है।*
शैलजा ने बेटी को अपनी बाहों में भर कर, प्यार से सिर पर हाथ फेर कर कहा *कोई बात नहीं बेटा! इतनी परेशानी के बावजूद तुमने पढ़ाई की, यही बहुत बड़ी बात है! मैं इसी बात से ही खुश हूं। जिंदगी सही सलामत रही तो तुम जीवन में बहुत कुछ कर लोगे, मुझे पता है। तुम्हारी हिम्मत को देखा है मैंने। कभी कभी परेशानी से मेरा मन डोल जाता था, पर तुम्हें अपने निश्चय पर अडिग देखा है मैंने। तुममें जो आत्मविश्वास है, वह आत्मविश्वास तुम्हें जीवन में प्रगति के पथ पर ले जाएगा।*
आज शैलजा अपनी बेटी लेखा को एयरपोर्ट छोड़ने आई है, क्योंकि वह अमेरिका जा रही है उच्च शिक्षा के लिए। अपनी बेटी को विदा करने के पश्चात शैलजा की आंखें नम थी, परंतु ह्रदय में एक खुशी की लहर भी थी। उसका मन सोच के समुद्र में गोता लगाने लगा *लोग बेटियां होने पर दुखी क्यों होते हैं? क्यों बेटियों को जन्म से पहले मार देते हैं। क्या बेटियों को इस धरा पर जन्म लेने का अधिकार नहीं है? क्या उसे जीवन जीने का अधिकार नहीं है? बेटियां तो वह संपत्ति है, जो किसी किस्मत वाले को ही प्राप्त होती है? कब सीखेंगे लोग? बेटियों की कद्र करना? हे ईश्वर! तुम्हें कोटि कोटि धन्यवाद! तुमने मुझे एक बहुमूल्य रत्न मेरी बेटी दी है*
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