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बेटी : बहुमूल्य रत्न

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 प्रेरक प्रसंग  बेटी : माँ का बहुमूल्य रत्न  दिन के पश्चात अस्पताल से घर लौटी शैलजा, पर घर लौट कर भी तो वह बिस्तर पर ही है। अचानक पैर फिसल जाने के कारण पांव की हड्डी टूट गई थी। जब से वह बिस्तर पर है तब से उसकी 18 वर्षीय बेटी लेखा ने अपने कंधों पर सारी जिम्मेदारी ले रखी है। घर में खाना बनाना, फिर मां के लिए टिफिन भर के अस्पताल ले जाना, उन्हें खिलाना, बेड पैन देना, उनके शरीर को स्पंज करना, कपड़े बदलना सारी जिम्मेदारी लेखा ने बखूबी संभाल ली। एक नन्ही सी जान और काम हजार फिर भी चेहरे पर शिकन नहीं। इतने सब कामों के बीच भी अपनी पढ़ाई जारी रखना कोई मामूली बात नहीं है, परंतु लेखा ने उसे भी बखूबी संभाल लिया है क्योंकि इस साल उसे इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम देना है।