कहानी:न्यायसंगत

प्रेरक प्रसंग: ईश्वरीय न्याय 


" ईश्वरीय न्याय "

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एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे ! थोड़ी देर में वहां एक आदमी और आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा ! शाम ढल आई और बादल उमड़ने के साथ तेज बारिश के आसार भी नजर आने लगे !*


*तीनों को बहुत जोर  से  भूख लग रही थी पर खराब मौसम के चलते कहीं बाहर जाने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही थी !*


*पहला आदमी बोला - मेरे पास 3 रोटी है फिर दूसरा बोला - मेरे पास 5 रोटी हैं ! हम तीनों मिल बांट कर खा लेते है ! उसके बाद दूसरा सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे ?*

*पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते है कि हर रोटी के 3 टुकड़े करते हैं अर्थात 8 रोटी के 24 टुकड़े  (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 - 8 टुकड़े  बराबर - बराबर बंट जाएंगे !*

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*तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24* *टुकड़े करके प्रत्येक ने 8 - 8 रोटी के टुकड़े खाकर अपनी भूख शांत की और फिर* *बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए !*


*सुबह उठने पर तीसरे आदमी* *ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने* *घर की ओर चला गया !*

*उसके जाने के बाद पहले आदमी ने दूसरे आदमी से कहा - हम दोनों 4 - 4 गिन्नी बांट लेते है !*


*दूसरा जवाब में बोला -  नहीं , मेरी 5 रोटी थी और तुम्हारी सिर्फ 3 रोटी थी अतः मै 5 गिन्नी और तुम्हें 3 गिन्नी मिलेंगी !*


*इस पर दोनों में बहस और झगड़ा होने लगा*

*इसके बाद वे दोनों सलाह और न्याय के लिए मंदिर के पुजारी के पास गए और उसे समस्या बताई तथा न्यायपूर्ण समाधान के लिए उनसे प्रार्थना की !*


*पुजारी भी असमंजस में पड़ गया उसने कहा - तुम लोग ये 8 गिन्नियां मेरे पास छोड़ *जाओ और  मुझे सोचने का समय दो... मै कल सबेरे* *तुमको जवाब दे पाऊंगा !*

*पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3 - 5 की बात ठीक लगी रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते - सोचते वो गहरी नींद में सो गया*


*कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और* *न्यायायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3 - 5बंटवारा ही उचित लगता है !*


*भगवान मुस्कुरा कर बोले - नहीं पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे  आदमी को 7 गिन्नी ...*


*भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा -  प्रभू ये ऐसा कैसे ? भगवन फिर एक बार मुस्कुराए और बोले  - इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाया अर्थात उसका  त्याग सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है !*

*दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाए और 7 टुकड़े उसने बांट दिए इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और येही मेरा न्याय है*

*ईश्वर की न्याय का सटीक विश्लेषण सुनकर पुजारी उनके चरणों में नतमस्तक हो गया !*




*सार:-*

*इस कहानी का सार ये ही है कि हमारा वस्तुस्थिति को देखने जानने और समझने  का दृष्टिकोण और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है !  हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी है !*

*हम अपने त्याग का गुणगान करते है परंतु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य एवं स्वयं भोग के तौर पर कर यथोचित निर्णय करते हैं !  महत्वपूर्ण यहीं है कि हम सेवाभाव कार्य में त्याग में कितना दूसरों को बांटते है !*



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